


विश्व आदिवासी दिवस पर लैलूंगा में हज़ारों की हुंकार – जल, जंगल, ज़मीन के लिए सड़कों पर उतरा जनसैलाब!
लैलूंगा, 10 अगस्त — विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर सर्व आदिवासी समाज इकाई लैलूंगा के नेतृत्व में इंद्रप्रस्थ स्टेडियम लैलूंगा ऐतिहासिक जनसमूह का साक्षी बना। सुबह की पहली किरण के साथ ही प्रकृति माता की आराधना और संविधान शिल्पकार डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर सशक्त रैली की शुरुआत हुई।
लैलूंगा के कोने-कोने और दूरस्थ गांवों से उमड़े करीब 3000 आदिवासी बंधु—हाथों में , झंडे, और नारों के साथ—जल, जंगल, ज़मीन, संस्कृति और अधिकार की रक्षा का संकल्प लेते हुए नगर भ्रमण पर निकले। पूरे कस्बे में “हमारा हक – हमारा संघर्ष” और “जल-जंगल-ज़मीन हमारा है” जैसे नारे गूंजते रहे।
मंच से गरजा नेतृत्व
कार्यक्रम में मंच पर मौजूद विधायक विद्यावती सिदार, पूर्व विधायक ह्रदय राम राठिया, जिला पंचायत उपाध्यक्ष दीपक सिदार, जिला पंचायत सदस्य निर्मल कुजूर, समाजसेवी राजेश मरकाम, रुपनारायण एक्का, सुनील खलखो, अनत राम पैंकरा, लाला राम भाई और अमीलाल देल्की ने बारी-बारी से जोशीले संबोधन दिए।
पूर्व विधायक ह्रदय राम राठिया और निर्मल कुजूर ने वर्तमान शासन व्यवस्था पर सीधा हमला बोलते हुए कहा—“सरकार चुनिंदा पूंजीपतियों की कठपुतली बन चुकी है, जो आदिवासियों को उनके पुश्तैनी जल, जंगल और ज़मीन से बेदखल करने पर आमादा है।”
उन्होंने जनता को चेतावनी दी—“अत्याचार के खिलाफ सड़क पर उतरना ही अब एकमात्र रास्ता है।”
संघर्ष और संगठन का संदेश
राजेश मरकाम और रुपनारायण एक्का ने जोर देकर कहा कि—
“संवैधानिक अधिकार, शिक्षा, रोजगार, और संस्कृति की रक्षा की जिम्मेदारी खुद समाज को उठानी होगी।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि विश्व आदिवासी दिवस केवल उत्सव नहीं बल्कि एक चेतावनी है—संगठित रहो, संघर्ष करो और अपनी विरासत बचाओ।
संस्कृति की झलक, संघर्ष की हुंकार
कार्यक्रम में आदिवासी पारंपरिक नृत्य की भव्य प्रस्तुति ने माहौल को सांस्कृतिक रंगों से भर दिया, वहीं हर गीत में संघर्ष और एकता का संदेश गूंजता रहा।
अजजा शासकीय सेवक संघ ने पूरे आयोजन के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
10 अगस्त का यह दिन लैलूंगा के इतिहास में दर्ज हो गया—जहां आदिवासी समाज ने सत्ता, पूंजी और अन्याय के खिलाफ एकजुट होकर हुंकार भरी और आने वाले संघर्ष के लिए स्पष्ट चेतावनी दे दी।






