
लैलूंगा उत्तरछत्तीसगढ़ में रजत महोत्सव का महाफेल?
75 ग्राम पंचायत के आदिवासी क्षेत्र में जनजातीय लोकनृत्य महोत्सव, लेकिन मैदान में उतरी सिर्फ 4 पार्टी!
व्यवस्थाओं पर सवाल, सूचना व्यवस्था पर उठे बड़े सवाल!
लैलूंगा/छत्तीसगढ़ रजत महोत्सव के तहत उत्तरछत्तीसगढ़ के लैलूंगा क्षेत्र में आयोजित जनजातीय लोकनृत्य महोत्सव का भव्य मंच, आकर्षक सजावट, जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति और अधिकारी-कर्मचारियों की भीड़—सब कुछ तैयार था। कार्यक्रम को लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए थे। कहा गया था कि यह आयोजन क्षेत्र की जनजातीय कला, संस्कृति और परंपराओं को राष्ट्रीय पहचान दिलाने का एक सुनहरा अवसर है। लेकिन जब महोत्सव शुरू हुआ, तब जो दृश्य सामने आया उसने सबको चौंका दिया।
जहां 75 ग्राम पंचायतों का विशाल आदिवासी क्षेत्र इस आयोजन के दायरे में आता है, वहीं सिर्फ 4 लोकनृत्य दल (कर्मा पार्टियां) ही कार्यक्रम में शामिल हुईं। इतना बड़ा आयोजन, इतना बड़ा मंच और इतनी कम भागीदारी… यह प्रशासन और आयोजन समिति दोनों के लिए सवाल खड़े करता है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि या तो ग्राम पंचायतों को इस कार्यक्रम की उचित जानकारी नहीं दी गई या फिर कार्यक्रम को गंभीरता से लिया ही नहीं गया। कई ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें आयोजन की तिथि, समय और मंच व्यवस्था के बारे में कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली, जिस कारण उनकी सांस्कृतिक टीमें तैयारी ही नहीं कर पाईं। वहीँ कुछ का मानना है कि कार्यक्रम की सूचना सिर्फ कागज़ों में ही सीमित थी।
कार्यक्रम स्थल पर मौजूद कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे एक गंभीर प्रशासनिक लापरवाही बताते हुए कहा कि इतनी बड़ी सांस्कृतिक पहचान वाले आयोजन में इतनी कम भागीदारी होना वाकई सोचनीय विषय है। जब उत्तरछत्तीसगढ़ की पहचान ही जनजातीय कला है, तो फिर उन कलाकारों तक कार्यक्रम की सूचना पहुंचाने में चूक क्यों हुई?
मंच पर उपस्थित जनप्रतिनिधि और अधिकारी जहां मंच से संस्कृति संरक्षण की बातें कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर खाली बैठे कलाकार और दर्शक इस महोत्सव की विफलता पर सवाल उठा रहे थे। ग्रामीणों ने मांग की है कि जांच की जाए कि आखिर किस स्तर पर चूक हुई।
क्या ग्राम पंचायतों को सही सूचना नहीं दी गई?
क्या कार्यक्रम की तैयारी सिर्फ औपचारिकता के लिए की गई?
या फिर जनजातीय कलाकारों की उपेक्षा की गई?
इन सवालों के जवाब शायद आने वाले दिनों में मिलेंगे, लेकिन अभी जो तस्वीर सामने आई है, वह उत्तरछत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान पर बड़ा प्रश्नचिह्न जरूर लगा रही है।






